01 फ़रवरी 2008

नई पीढ़ी के नाम

उस जिंदा और
जीते -जागते ख्वाब के नाम
जिसे देखने का हक
आने वाली नस्लों से
कोई नहीं छीन सकता

तू तू -मैं मैं और नितांत व्यक्तिगत संदर्भों तक उतर आयी ब्लागिया बहसों की भीड़ में नई पीढ़ी अलग-अलग आखों में पलते सपनों को एक व्यापक फलक देने की मुहीम है.जहाँ व्यक्तिगत सामाजिक है और सामाजिक व्यक्तिगत.यहाँ हम अपने दौर के सबसे भोले सवालों को उठाएँगे,जो बेशक इस दौर के सबसे बड़े सवाल हैं.इन सवालों से रोज़ टकराती नई पीढ़ी विद्रोह की जिन नई भंगिमाओं में मोर्चेबंदी कर रही है उसमें 'नई पीढ़ी'भी है.

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