01 फ़रवरी 2008

बे दिल हुए दिल्ली में

विजय मिश्र
कुछ साल पहले दिल्ली बहुत उम्मीदों के साथ आया था । अवध के छोटे से कसबे में पैदा हुआ और पला -बढ़ा ,जहाँ अभी भी लोग 'पहले आप -पहले आप ' के चक्कर में ट्रेन छोड़ देते हैं । आगरा में तीन साल बी.ए . करते हुए भी कभी अवध से अपने आप को बहुत दूर नहीं पाया ।
दिल्ली में, मैं ग़ालिब और जौके से मिलने आया था , दिल्ली कि तहजीब से मिलने आया था। स्टेशन से अपने दोस्त के कमरे पर आने तक बस के सफर में मुछे लगा कि मैं गलत शहर में आ गया हूँ । बस के अन्दर कंडक्टर खुले आम सवारिओं को गाली दे रहा था । मेरे दोस्त ने बताया कि कंडक्टर जाट था और हरियाणवी बोल रहा था । ( जारी ) परिचय - विजय मिश्रा शोध छात्र हैं

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