23 अप्रैल 2009

मुआवजे में आने, रहने के नहीं ठिकाने

प्रद्युम्न शर्मा

झालावाड।(राजस्थान) लोकसभा चुनावों की गर्मी में विकास के मुद्दे और वादे भले ही जमकर भुनाए जा रहे हैं। लेकिन जिले का एक गांव ऎसा भी जो विकास का "साइडइफेक्ट" भुगत रहा है। मनोहरथाना क्षेत्र के कालीखाड बांध की डूब में आए कोलूखेडी मालियान गांव को विकास ने आगे बढाने के बजाय न केवल एक दशक पीछे धकेल दिया बल्कि कई परिवारों का तानाबना ही बिखर गया है। दोष चाहे संवेदनहीन सरकारी कारिंदों का हो या व्यवस्थागत खामियों का। लेकिन पुनर्वास इस गांव के लिए अभिशाप बन गया।

ग्रामीणों के कच्चे पक्के घरों का सरकार ने जो मुआवाजा दिया उसे चाहे तो ओढ लो और चाहे तो बिछा लो। इस रकम में किसी ने मकान की नींव भर ली तो अब दीवारें बनाने व छप्पर छाने की समस्या। लेकिन बांध में इस बार पानी भरा जाना है। सरकार ने गांव खाली करने की चेतावनी दी तो सभी ने अपने स्तर पर घर बनाने के लिए रकम का इंतजाम किया। अधिकांश परिवारों में महिलाओं के जेवर बिक गए। इसमें पार नहीं पडी तो तीन प्रतिशत मासिक की मोटी ब्याज दर पर चालीस-पचास हजार रूपए तक कर्ज लिया।

ईंट पत्थर नए घर में काम में ले सके इसके लिए पुराने घरों को तोड कर घर का सामान सहित अधिकांश परिवार नए स्थान पर आ गए। लेकिन मकान बनाने व मवेशियों के लिए तो दूर पीने तक को पानी नहीं। घर बनाने व पीने के लिए करीब डेढ किलोमीटर दूर नीचे से पानी लाना पडता है। सडक का नामोनिशान नहीं। बिजली के खंभों पर केबल तो हैं लेकिन कुछ बीपीएल परिवारों को छोडकर किसी घर में बिजली कनेक्शन नहीं है। जिनके घर अधूरे हैं उनको वैशाख की तपती दुपहरी में टुकडा टुकडा छांव भी तलाशनी पड रही है। ऎसे हालात में ही बच्चों को परीक्षाएं देनी पड रही है। चुनावी माहौल है तो वोट मांगने वाले भी आ रहे हैं। कई के सामने अपना दर्द बयां किया। लेकिन आश्वासनों के मरहम के सिवा कुछ नहीं मिला।

ये मिला मुआवजा
गांव के गंगाराम लुहार के करीब 12 गुणा 15 फीट के दो पक्के कमरों का मुआवजा मात्र साठ हजार रूपए दिया गया। इतनी रकम तो दो कमरों की नीव व कुर्सी भराई में खर्च हो रही है। इसी तरह कमलेश पुष्पद के एक करीब 15 गुणा 18 व दूसरे करीब 15 गुणा 15 फीट के कमरे के एवज में मात्र 37 हजार रूपए दिए गए। यही हालत गांव के अन्य लोगों की है।

बिगडा सामाजिक तानाबना
पुनर्वास ने कुछ लोगों के घर ही नहीं पारिवारिक तानेबाने को भी बिगाड दिया है। घर ढह गया और नया घर बना नहीं। खुले आकाश के नीचे कैसे गुजारा हो। तंग आकर कुछ माह पहले ही ससुराल आई गांव के जगदीश विश्वकर्मा की पत्नी कुसुम अपने पीहर मध्यप्रदेश के आम्बा चली गई। इसी तरह नेनकराम की पत्नी मिथलेश बच्चों को लेकर अपने पीहर मध्यप्रदेश के बीनागंज चली गई।

आखिर नेनकराम ने एक किलो चांदी के जेवर बेचे और साठ हजार रूपए उधार लेकर घर को रहने लायक बनाया तो एक माह बाद मिथलेश वापस लौटी। कमलेश पुष्पद के बडे बेटे सुनील की शादी अप्रेल में तय की गई थी। लेकिन जब खुद के ही रहने के ठिकाने नहीं तो नई बहू को कहां रखेंगे। आखिर शादी इस साल स्थगित बदलनी पडी। ऎसी ही कहानियां हर घर में है।

-गांव में जो घर बने हैं उनके मुआवजे का आंकलन सार्वजनिक निर्माण विभाग की बीएसआर दर के आधार पर किया जाता है। नियमानुसार जो मुआवजा बनता है वह दिया गया है। इसके आंकलन में कहीं खामी रही हो तो पीडि$त व्यक्ति मुझे अवगत करा सकते हैं, उसे दुरूस्त कर दिया जाएगा।
- कृष्ण कुणाल, जिला कलक्टर

-पुनर्वास स्थल पर सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा दी है। ट्यूबवेल व हेण्डपम्प में लगाए हैं। फिर भी समस्या है तो जलदाय विभाग को वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए।
- भुवन भास्कर, अधिशासी अभियंता, जलसंसाधन विभाग

साभार - राजस्थान पत्रिका

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