29 अप्रैल 2009

पूर्वांचल की राजनीति के बदलते रंग : लूटले बा, लुटावत बा, आ लुटे खातिर धावत बा

आनंद प्रधान

पूर्वांचल यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अपराधियों-माफियाओं और धनबलियों के बढ़ते दबदबे के खिलाफ विरोध के सुर और बदलाव की सुगबुगाहट को सुनाई देने लगी है। हालांकि मुख्यधारा के सभी राजनीतिक दलों ने बदलाव की इस सुगबुगाहट को नजरअंदाज करते हुए अपराधियों और धनबलियों को दोनों हाथों से टिकट बांटा है और मतदाताओं के लिए कोई खास विकल्प नहीं छोड़ा है। लेकिन इस सबके खिलाफ लोगों की निराशा और गुस्से का इजहार कई रूपों में हो रहा है। यह पूर्वांचल की उन 16 सीटों पर नए गुल खिला सकता है जहां इस गुरूवार को मतदान होना है।

पूर्वांचल देश के सबसे पिछड़े और गरीब इलाकों में से एक है। लेकिन इस गरीब और पिछड़े इलाके में करोड़पति प्रत्याशियों की भरमार है। यहां की 16 सीटों के लिए कुल 272 प्रत्याशी मैदान में हैं जिनमें 36 करोड़पति हैं। यूपी इलेक्शन वाच और पीवीसीएचआर के मुताबिक भाजपा ने सबसे अधिक आठ करोड़पति प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं सपा और बसपा ने 7-7 करोड़पतियों को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस की ओर से 6 करोड़पति जोर-आजमाइश कर रहे हैं। यही नहीं, पिछले चुनावों की तुलना में इसबार इन करोड़पति प्रत्याशियों की संपत्ति में 92 फीसदी यानी सालाना औसतन 18।5 फीसदी की बढोतरी दर्ज की गयी है जो देश की औसत विकास दर के दोगुने से भी ज्यादा है। यह और बात है कि खुद पूर्वी उत्तर प्रदेश की विकास दर मुश्किल से औसतन 3 फीसदी सालाना तक पहुंच पायी हे जो कि राष्ट्रीय विकास दर के आधे से भी कम है।

लेकिन इससे करोड़पति उम्मीदवारों पर कोई फर्क नही पड़ता है। चुनाव में पैसा पानी की तरह बह रहा है। वोट वोट खरीदने के लिए थैलियां खोल दी गयी हैं। वोटों का खुला सौदा हो रहा है। उदाहरण के लिए देवरिया सीट पर बसपा प्रत्याशी गोरख प्रसाद जायसवाल की सबसे बड़ी काबिलियत यह है कि वे न सिर्फ करोड़पति हैं बल्कि दोनों हाथों से पैसा लुटा रहे हैं। उनके लिए यह चुनावी सफलता का आजमाया हुआ फार्मूला है। इसी फार्मूले पर उनके बेटे राम प्रसाद जायसवाल ने बसपा के टिकट पर बरहज (बांसगांव) विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी। जायसवाल का हौसला इसलिए भी बढ़ा हुआ है कि देवरिया संसदीय क्षेत्र के रूद्रपुर और गौरी बाजार विधानसभा सीटों पर भी बसपा के करोड़पति उम्मीदवारों सुरेश तिवारी और प्रमोद सिंह ने पैसा बहाकर चुनाव जीत लिया था।

देवरिया में चर्चा है कि जायसवाल पिछले छह महीनों से न सिर्फ मुर्गा बिरयानी की दावतें दे रहे हैं बल्कि ग्राम प्रधानों को पैसा बांटकर उनके जरिए वोटों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं। इसके बावजूद उनका फार्मूला इसबार चलता नहीं दिख रहा है। लोगों के बीच भोजपुरी में एक मजाक चल रहा है- लूटले बा, लुटावत बा, और लूटे खातिर धावत बा। अधिकांश करोड़पति प्रत्याशियों के बारे में लोगों की राय कुछ ऐसी ही है। मुगलसराय में लाल बहादुर शास्त्री पी जी डिग्री कॉलेज में समाजशास्त्र के अध्यापक डा. दीनबंधु तिवारी कहते हैं ‘धनबलियों और अपराधियों ने चुनाव को मजाक बना दिया है। अफसोस की बात है कि राजनीतिक दल भी उनके बंधक बन गए हैं।'
डा। तिवारी के इलाके चंदौली संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी जवाहर लाल जायसवाल पूर्वी उत्तर प्रदेश में शराब के सबसे बड़े ठेकेदार हैं। उनके मुकाबले एक स्थानीय पार्टी-भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे करोड़पति तुलसी सिंह राजपूत ने इतना पैसा बहाया है कि इलाके में एक मजाक चल पड़ा है- ‘आसमान में हीरो जमीन पर जीरो।श् लेकिन यह सब उस जिले में हो रहा है जहां ग्रामीण इलाके में 36 प्रतिशत और शहरी इलाके में 74 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। देवरिया जिले की स्थिति तो और खराब है। देवरिया में ग्रामीण इलाके में लगभग 42 प्रतिशत और शहरी इलाके में 59.7 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। एनएसएसओ के 61 वें दौर के सर्वेक्षण के अनुसार कुशीनगर (पडरौना) जिले में ग्रामीण इलाके में 54.8 प्रतिशत और शहरी इलाके में 57 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने को मजबूर हैं।

कुशीनगर नगर वह इलाका है जहां गौतम बुद्व ने निर्वाण प्राप्त किया था। आज यहां लोग भूख से मर रहे हैं। स्थानीय पत्रकार अजय शुक्ला के अनुसार पिछले ढाई सालों में कुशीनगर में भूख से 70 से ज्यादा मौतें हुई हैं। हालांकि स्थानीय प्रशासन इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है लेकिन भूखमरी के सबसे ज्यादा शिकार वे मुसहर परिवार हुए हैं जो गरीबों में भी गरीब माने जाते हैं। इस कुशीनगर में कांग्रेस की ओर से पडरौना राजपरिवार के कुंवर आरपीएन सिंह और बसपा की ओर से कैबिनेट मंत्री और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य उम्मीदवार हैं। जाहिर है कि पैसा पानी की तरह बह रहा है और कुशीनगर को स्वर्ग बनाने के वायदे किए जा रहे हैं। यह और बात है कि कुशीनगर सामाजिक-आर्थिक सूचकांक और संरचनागत विकास के मामले में ‘इंडिया टुडेश् के एक सर्वेक्षण में अभी देश के सबसे बदतरीन 100 संसदीय क्षेत्रों में 26 वें स्थान पर है।

कोढ़ में खाज की तरह कई करोड़पति प्रत्याशियों का अपराध की दुनिया में भी उतना ही नाम है। सभी राजनीतिक दलों ने चुनावी सफलता के लिए जिस तरह से अपराधियों पर भरोसा जताया है, वह स्तब्ध करनेवाला है। इलेक्शन वाच के मुताबिक पूर्वांचल की 16 सीटों के लिए लड़ रहे 272 प्रत्याशियों में लगभग 47 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। बसपा की कमान पूरी तरह से अपराधियों और माफियाओं के हाथ में पहुँच गयी है। बसपा ने गोरखपुर अंचल में अपराध की दुनिया के बहुचर्चित चेहरे हरिशंकर तिवारी के दोनों बेटो के अलावा भांजे को भी चुनाव मैदान में उतारा है जबकि बनारस में माफिया डॉन मोख्तार अंसारी और गाजीपुर में उनके भाई अफजाल अंसारी पर दांव लगाया है। अपराधियों को टिकट देने के मामले में बसपा ने जिस तरह से उदारता बरती है, उसके कारण विधानसभा चुनावों के पहले का उसका नारा पलटकर दोहराया जा रहा है- गुंडे चढ़ गए हाथी पर, गोली मारें छाती पर। इससे बसपा का नारा था- चढ़ गुंडन की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर।

वैसे अपराधियों को टिकट देने के मामले में सपा, भाजपा और कांग्रेस भी पीछे नहीं हैं। लेकिन बसपा ने तो अपराधियों को थोक के भाव टिकट देने में सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। शायद इस दौर की राजनीतिक सच्चाई यही है। बनारस से बसपा प्रत्याशी और माफिया डॉन मोख्तार अंसारी ने जेल से ‘बनारस की अजीम अवाम के नाम' पैगाम देते हुए अपनी ऐंठी मूंछों वाली मुस्कुराती तस्वीर के नीचे एक शेर छपवाया है जो इस सच्चाई को बयान कर देता है- ‘मेरी तस्वीर के नक्क़ास ज़रा गौर से देख, उसमे उस दौर की तारिख़ नज़र आयेगी।' साफ़ है कि अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और प्रशासनिक मशीनरी बिल्कुल पस्त पड़ी है।

अपराधियो के हौसले इसलिए भी बुलंद हैं कि जो जितना बड़ा डॉन है, वह अपनी जाति या धर्म की उतनी बड़ी शान है। समाजवादी जन परिषद के नेता और जाने-माने ब्लॉगर अफलातून देसाई के अनुसार, ‘जातिवादी राजनीति का नया चेहरा ये माफिया डॉन हैं।श् गोरखपुर के मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार मनोज सिंह पूर्वांचल में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के लिए अर्थनीति के अपराधीकरण को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि, ‘ये अपराधी विकास योजनाओं और बैंक-ब्लॉक के जरिए आनेवाले धन की लूट से पैदा हो रहे हैं।श् यह काफी हद तक सच है। अधिकांश करोड़पति और अपराधी प्रत्याशी सार्वजनिक धन की लूट पर ही पल-बढ़ रहे हैं और राजनीति में उनका प्रवेश इस लूट को राजनीति वैधता दिलाने की एक कोशिश दिखाई देती है।

पूर्वांचल में आम लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। गोरखपुर से आजमगढ़ आते हुए ड्राइवर राहुल ने गढढों से भरी, उबड़-खाबड़ सड़क की ओर दिखाते हुए बताया कि, ‘ इसका ठेका पंडित हरिशंकर तिवारी के पास है।श् कहने की जरूरत नहीं है कि इस पूरे अंचल में तिवारी के गंगोत्री इंटरप्राइजेज की तूती बोलती है। उनकी इजाजत के बिना कोई दूसरा किसी सरकारी योजना निर्माण का ठेका नहीं ले सकता है। यही हाल बनारस और आसपास के जिलों में मोख्तार अंसारी का और आजमगढ़ में भाजपा प्रत्याशी रमाकांत यादव का है।

लेकिन पूर्वांचल में बाहुबल और धनबल की राजनीति अब लगभग अपने अंतिम छोर (डेड एंड) पर पहुंच गयी है। लोग इससे उकता रहे हैं। वे बदलाव चाहते हैं। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि 16 मई को मतगणना के बाद अधिकांश बाहुबली और धनबली धूल चाटते नजर आएं।

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