09 जून 2009

गुजरे और फिर आ के गुजर जाने वाले इंतखाबात पर एक तब्सेराती ग़ज़ल


एहसान हसन
एह्सान भाई इलाहाबाद की उन गलियों में आसानी से देखे जाते जो नौकरशाह पैदा करने की खान समझी जाती है. इन गलियों में एहसान भाई के सामने कई पीढियाँ आई और गई, लेकिन वह अभी भी जिन्दगी का असली मकसद तलाश रहे हैं. कैफी आज़मी पर डाक्टरी पा चुके, ‘‘टिपीकल इलाहाबादी’’ एहसान हसन शौकिया नहीं जबरिया शायर हैं। साठ बरसों से जबरन थोपे जा रहे इंतखाबात पर जबरिया लिखी गयी ग़ज़ल़!



सच्चे झूटे इंतखाबात की कहानी में
दिल बहुत टूटे हंै इस हुक्मरानी में


पाक हो के आयें पैराहन पेरिस से
फिर लगे कोई सुर्ख गुलाब शेरवानी में


एक शख्स की सियासी ज़िद के आगे
लुट गयी मादरे हिंद भरी जवानी में


बदला तर्ज़ सियासी फिर हमने देखा चैरासी
जल उट्ठे सरदार कुछ असरदारों की मनमानी में


सितमगर को याद करो छह दिसम्बर को याद करो
कितना खून बहा मरकज़ और सूबे की आनाकानी में


गोधरा में उस रात को फिर महीनों गुजरात को
किसने फॅूंका किसने फाड़ा किसकी निगहबानी में


जम्हूरियत की ये लाश ढोते फिरोगे कब तक
वक़्त है अब भी लगा दो आग राजधानी में

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अपना समय