15 जून 2009

सूचना अधिकार कानून में परिवर्तन, भ्रष्टाचार की साजिश !

उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों सूचना अधिकार कानून में परिवर्तन कर कई मामलों को सूचना पाने के दायरे से अलग कर दिया था. इसमें राज्यपाल की नियुक्ति, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, मंत्रियों की नियुक्ति व मंत्रियों की आचरण संहिता जैसे मामले शामिल हैं. इस परिवर्तन का सीधा मतलब इन नियुक्तियों में होने वाले भ्रष्टाचार को छिपाना है. मुख्यमंत्री मायावती के इस फैसले का विभिन्न सामाजिक-राजनितिक संगठनों ने विरोध किया है. विरोध की इसी कड़ी में सोमवार को कुछ सामाजिक संगठनों ने उत्तर प्रदेश विधानसभ के सामने धरना दिया और राज्यपाल को ज्ञापन देकर विरोध दर्ज कराया.



सेवा में
राज्यपाल, उ.प्र.

उ.प्र. सरकार द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005, के दायरे से पांच विषयों - राज्यपाल की नियुक्ति, उच्च न्यायालय के न्यायाधीषों की नियुक्ति, मंत्रियों की नियुक्ति, मंत्रियों की आचरण संहिता तथा राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को लिखे पत्र - तथा पिछले वर्ष नागरिक उड्डयन विभाग को बाहर किए जाने का हम विरोध करते हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005, की धारा 24 की उप-धारा 4 के तहत राज्य सरकार सिर्फ सुरक्षा एवं अभिसूचना से सम्बन्धित विभागों को ही इस कानून के दायरे बाहर कर सकती है। हमारा मानना है कि उपर्युक्त विषयों में से कोई भी या नागरिक उड्डयन विभाग सुरक्षा एवं अभिसूचना की श्रेणी में नहीं आते।
संविधान के अनुच्छेद 256 के अंतर्गत राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुपालन की व्यवस्था सुनिश्चित करनी है। वह किसी कानून को कमजोर नहीं कर सकती।
राज्य सरकार का कदम कानून विरोधी तथा संविधान विरोधी भी है। कृपया राज्य सरकार को सूचना के अधिकार अधिनियम में लाए गए परिवर्तनों को वापस लेने हेतु निर्देश दें। हम चाहते हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005, अपने मौलिक स्वरूप में बना रहे।

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