29 जून 2009

मौत मांग रहे हैं पलामू के पांच हजार किसान


मुन्ना कुमार झा

भारत के इतिहास में यह ऐतिहासिक घटना भी हो सकती है और एतिहासिक त्रासदी भी. लेकिन यह घटना तो है. पलामू के छतरपुर इलाके के लगभग 5000 किसान मरना चाहते हैं. पिछले तीन साल से सूखे से पीड़ित पलामू के ये किसान अब चाहते हैं कि सरकार उन्हें राहत तो नहीं दे सकी तो कम से कम मरने की इजाजत दे दे. अर्जी अभी पांच हजार किसानों की है लेकिन 30 हजार और किसान इच्छामृत्यु की अपनी अर्जियां तैयार कर रहे हैं.
छतरपुर के 5000 किसानों ने इच्छामृत्यु के लिए जिलाधिकारी, राज्य स्तर के अधिकारी, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, राज्यपाल झारखण्ड, मुख्य न्यायाधीश झारखण्ड, राज्यपाल के सलाहकार परिशद के सदस्य, सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के सदस्य को इच्छा मृत्यु के आदेश देने के संबंध में चिट्ठी भेजी है, जिसमें तीन साल से लगातार सूखा पड़ने से त्रस्त किसानों ने इच्छा मृत्यु करने की बात कही है। छतरपुर के किसानों का कहना है कि बार - बार सुखाड़ पड़ने के कारण हम लोग कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं। पिछले तीन सालों में जो भी फसल लगाने के प्रयास किये गये वे सारे प्रयास नाकाम ही रहे। ऊपर से महाजन का कर्ज हम पर दिन दूनी रात चौगुनी होता जा रहा है। पिछले तीन साल में न तो किसी प्रखंड के अधिकारी ने सुध ली न ही कोई जिलाधिकारी ने। सुखाड़ का भयावह मंजर साल दर साल गुजरता गया लेकिन, सरकारी अफसरशाही बर्बाद हो चुके किसानों की 2006 से अब तक अनदेखी करती आयी हैं।
गोपाल सिंह, विष्णुदेव सिंह, महंग साव, बुद्धि सिंह, सदानन्द सिंह जैसे कई किसान और खेतिहर मजदूर लाखों के कर्ज में डूबकर भी भूखे पेट रहने पर मजबूर हैं। ऐसा नहीं कि यही कुछ नाम है जो भूखे पेट हैं या लाखों का कर्ज है, ऐसे छोटे, मझौले और खेतिहर किसानों की संख्या हजारों में है। संकट का यह अंतिम पायदान अब इन किसानों के लिए इच्छामृत्यु तक पहुंच गयी है। सवाल यह है कि विदर्भ में जब सैकड़ों किसानों ने आत्महत्या कि तब कहीं जाकर सरकार जगी, आंध्रप्रदेश के किसानों ने आत्महत्या किया तब जाकर सरकार जागी, कुछ दिन पहले जब बुंदेलखंड में किसानों ने आत्महत्या किया तब सरकार की नींद खुलती है। यह सब साल दल साल किसानों कि आत्महत्या का मामला ब्रेड बटर की तरह हो चुका है, जिस पर सरकारी तंत्र सॉस लगाकर खाने का काम करते हैं।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ पलामू में ही किसान सुखाड़ से त्रस्त है, पूरे सूबे में सुखाड़ की वजह से आदिवासी किसानों की हालत भी गंभीर बनी हुई है, राज्य में लगभग 18 जिलों में सूखे ने खेती और किसानों को प्रभावित किया है. पश्चिमी सिंहभूम जिले के कई गांव में आदिवासी किसान भूख और सुखाड़ की मार झेल रहें हैं, यहां ज्यादातर किसान चावल की ही खेती करते हैं, लेकिन पिछले साल से यहां की खेती बंजर में तब्दील हो चुकी है। पलामू के छतरपुर में 8 साल का रोहर बकरी चराते हुए तथा उसकी 11 साल की बहन पिंकी अपने हाथों में बड़ा घड़ा लिए हुए खुश थे। इसलिए क्योंकि खेती वाले जमीन पर बड़े - बड़े दरार पड़ चुके हैं। पिंकी और रोहन दरारों के अंदर झांक झांक कर जमीन के अंदर में क्या है यह देखने को उतारू थे। यह सब घटनाक्रम इन अबोध बच्चों के लिए एक नया अनुभव होगा। लेकिन इस घटनाक्रम के कारण न जाने कितने बच्चों के भविष्य को अंधकार में ले जाएगी। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगे छह महीनों से ज्यादा हो गये हैं। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भी पलामू के किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

पूरा पढें

कोई टिप्पणी नहीं:

अपना समय