26 जुलाई 2009

रपट के खिलाफ आजमगढ़ के लोग सड़क पर

अंबरीश कुमार
बाटला मुठभेड़ को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रपट पर आजमगढ़ के संजरपुर के लोगों का गुस्सा आज फूट पड़ा। मानवाधिकार व जनसंगठनों की पहल पर संजरपुर के लोगों ने आजमगढ़ कचेहरी में आज प्रदर्शन किया। अब ये लोग इलाहाबाद में जन सुनवाई कर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को बेनकाब करने की तैयारी कर रहें है। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने मानवाधिकार आयोग के साथ साथ केन्द्र सरकार के खिलाफ भी नारे लगाये लोग हाथों में तख्तियां लिऐ हुए थे। तख्तियों पर ''केंद्र सरकार की पिछलग्गू एन एच आर सी मुर्दाबाद, हमारे मासूम बच्चों की हत्या की न्यायिक जॉच कराओ’’ इत्यादि नारे लिखे गये थे। पीयूसीएल का आरोप है कि मानवाधिकार आयोग ने महज खाना पूरी करते हुए फर्जी एनकाउंटर फर्जी रिर्पोट पेष कर दी है। खास बात यह है कि मानवाधिकार आयोग ने न तो बाटला हाउस के आसपास रहने वालों से और न ही संजरपुर के पीड़ित परिवारों के लोगों से बात की।
गौरतलब है कि पिछले साल दिल्ली के जामियां नगर स्थित बाटला हाउस में मुठभेड़ हुई थी। 19 सितम्बर को हुए इस कथित मुठभेड़ पर शुरु से सवाल उठते रहे है। मानवाधिकार संगठन इसकी न्यायिक जॉच की मांग करते रहे है। इस संदिग्ध मुठभेड़ में मारे गये 22 वर्षीय आतिफ और 16 साल के साजिद आजमगढ़ के संजरपुर गॉव के रहने वाले थे। शुक्रवार धरना प्रर्दशन में संजरपुर संर्घष समिति के नेता मसीहुद्दीन संजरी तारिक शफीक और विनोद यादव ने कहा- मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट देकर जहॉ एक ओर अपनी विश्वसनीयता समाप्त कर ली है वही उसने हमारे जèख्मों पर फिर से नमक छिडका है। जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर से प्रर्दशन में शामिल होने आये फरीहा गॉव के लल्लन प्रसाद और सालिम दाउदी ने कहा - इस घटना के बाद से ही सैकडों लडके अपनी पढाई छोडकर घर बैठने को मजबूर है क्योंकि उन्हें बाहर कमरे नही मिल रहे हैं।
इस घटना के बाद आजमगढ़ के लोगों में भडके गुस्से के बाद उलेमा कौंसिल का गठन किया गया था। इसका मकसद राजनैतिक हस्तक्षेप के जरीये अल्पसंख्यक समुदाय की आवाज को उठाना था। लेकिन उलेमा कौंसिल की राजनीति के चलते लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ में भाजपा को ही मदद मिली। उलेमा कौंसिल को उतने ही वोट मिले जितने वोटों की बढ़त से भाजपा जीती और बसपा के अकबर अहमद डंपी हारे। बहरहाल संजरपुर के लोगों का गुस्सा अभी थमा नही है और उसमें मानवाधिकार आयोग की रपट ने आग में घी डालने का काम किया है।
प्रर्र्दशन में पीडितों के परिजन भी आये थे। इसी मामले में गिरफ्तार मोहम्मद सैफ के पिता शादाब अहमद, जिनका दूसरा बेटा शहबाज भी घटना के बाद से ही लापता है, उन्होने कहा - आखिर सरकार क्या चाहती है। पुलिस कह रही है कि उसने बाटला हाउस मुुठभेड में साजिद और आतिफ को मारा और सैफ को गिरफ्तार किया। तब ऐसे में सवाल उठता है कि जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का कोई भी नुमाइंदा सैफ से नही मिला तो कैसे रिपोर्ट पेश कर पुलिस को क्लीन चिट दे दी। इस मुठभेड़ में सैफ ही एकमात्र चश्मदीद गवाह था। शादाब बडी मायूसी से कहते हैं अब तो सब पर से भरोसा उठता जा रहा है। जिस आयोग को हमारी शिकायतें सुनने और मानवाधिकार की रक्षा के लिए बनाया गया था वही ऐसे फैसले दे रहा है तो हम कहॉ जायें। दूसरी ओर शादाब अहमद जैसे दर्जनोंे परिजन भी शामिल थे जिनके बच्चे अब तक लापता हैं। जो इस डर और दहशत में जीने को मजबूर हैं कि कब उनके बच्चांे की गिरफ्तारी या पुलिस द्बारा किसी फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने की खबर आ जाए।
पीयूसीएल के नेता राजीव यादव और शाहनवाजè आलम ने कहा - जिस तरह पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने यह तर्क देकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक नही होने दिया कि इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा। उसी समय यह स्पष्ट हो गया था कि जॉच रिपोर्ट किसके पक्ष में आयेगी। क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सार्वजनिक न होने के चलते कोई भी सरकारी संस्थान अपनी मनमानी कर सकता है। अगर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष है तो उसने पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नही करवायी जोकि किसी भी पीड़ित पक्ष का मानवाधिकार है। (जनसत्ता 25 जुलाई, 09)

साभार विरोध

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