13 नवंबर 2009

मायावती को शहीद उदा देवी से खतरा है !

- 16 नवम्बर 1857 को 32 अंग्रेजों को मार शहीद हुई थी उदा देवी

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को शहीदों का भी डर सता रहा है. इस डर के कारण ही राज्य सरकार ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की अमर शहीद ऊदा देवी की याद में उनके कौशाम्बी जिला स्थित उनके नंदा गांव में किसी तरह के कर्यक्रम की अनुमति देने से मना कर दिया है. 16 नवम्बर 1857 को 32 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारकर उदा देवी ने जो शहादत दी स्वतंत्र भारत में उन्हें याद करना गुनाह हो गया है. दलितों की रहनुमाई करने वाली मायावती उस शहीद से डर रही हैं जो खुद भी दलित पासी समुदाय से आती हैं और जिन्होंने उस समय में शहादत दी जब दलितों के लिए न तो कोई आन्दोलन था न ही कोई दलित नेता.

कौशाम्बी जिला प्रशासन ने ऊदा देवी यादगार समिति को धारा 144 का हवाला देते हुए गांव में अनुमति देने से इनकार कर दिया है. समिति के संयोजक रामलाल भारतीय ने बसपा सरकार द्वारा 16 नवम्बर, 2009 को ऊदादेवी की याद में जनसभा की अनुमति न देने की कड़ी निन्दा की है। उन्होंने कहा की महिला और दलित राष्ट्रीय नायकों की यादगार सभाओं को रोकना, विशेषकर वो जिन्होंने अंग्रेजों और लगान वसूली व उनके दलालों के विरूद्ध लड़ाई में अपनी जान दी थी, बसपा सरकार के चरित्रा को खोलकर रख देती है।

संयोजक मंडल के सदस्य और मजदुर नेता सुरेश चन्द्र ने बताया की मजदूरों, भूमिहीन किसानों तथा दलितों की शांतिपूर्ण बैठक पर प्रतिबंध लगाने का धारा 144 का बहाना पूर्णतः खोखला है और संविधान में दर्ज एकत्र होने और अभिव्यक्ति के अधिकारों के विरूद्ध है। हैरत यह है कि यह ऊदादेवी पासी की शहादत जैसे गम्भीर व संवेदनशील मामले में सामने आ रहा है। ऊदा देवी लखनऊ के सिकंदरबाग में 16 नवम्बर 1857 को 32 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई थीं।

बसपा का यह कदम उसके कानूनहीन शासन का परिचय है जो केवल सत्तारूढ़ ताकतों को लाभ पहुंचाने में लिप्त है। बसपा माफिया, बड़े जमींदारों, विदेशी कम्पनियों, भ्रष्ट अफसरों की सेवा में लगी है और इसके लिए वो उन गरीब लोगों को भी लात मारने व उनके संवैधानिक अधिकार छीनने को राजी है जिनके नाम पर वो राज कर रही है।

सुरेश चन्द्र कहते है की कौशाम्बी में, पूरे देश की तरह, सामंती गुण्डा गिरोह जनता की कमाई से गुण्डा टैक्स वसूलते है.ठीक उसी तरह से जैसा अंग्रेज लगान वसूलवाते थे। ये मजदूरों को मार-पीटकर दबाए रखते है.। ये गैरकानूनी ढंग से बालू निकालने की मशीनें लगाते है. जिससे पारिस्थितिकी नष्ट हो रही है। ये सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के सरगना हैं, घाटों तथा मछली मारने व रेत की खेती से गुण्डा टैक्स वसूलते है.। बसपा के बावजूद, प्रान्त के दलित आज छुआछूत, बलात्कार, गुण्डा वसूली, अत्याचार, जलाये जाने के शिकार हैं।

जहां देश की 77 फीसदी जनता 20 रुपये रोज पर जीवित है, ये जमींदार उन्हें खेतों, नदी व बालू के धंधे व उनके घरों से बेदखल कर रहे हैं, उन्हें बाहर जाकर विदेशी कम्पनियों के लिए सस्ते मजदूर के तौर पर काम करने को मजबूर कर रहे हैं। ये जमींदार हजारों गैरलाइसेन्सी बड़े असलहे लेकर चलते हैं ताकि जनता को आतंकित कर सकें। पुलिस इनके साथ है। वो घर-घर जाकर लोगों से कह रही है कि बसपा के सदस्य बनो, अपना लड़ाकू संगठन मत बनाओ।

बसपा प्रशासन ने शांतिपूर्ण ढंग से अपनी जीविका बचाने और संविधान में दर्ज अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ रहे मजदूरों पर कई झूठे मुकदमें दर्ज करा रखे हैं, हालांकि बसपा उसी संविधान को लागू करने का दावा करती है। यह बसपा की जनता पर गैर संवैधानिक हिंसा है। ये दिखाता है कि वो खुद उस संविधान और कानून को नहीं मानती।

ऊदादेवी पासी यादगार समिति घोषणा कि है की वह बिना कारण के ही सरकार ने कार्यक्रम को अनुमति देने से मना किया है, इसलिए कार्यक्रम होगा। यह अब नन्दा का पूरा गांव में सुबह 11 बजे से होगा। ऊदादेवी यादगार समिति कौशाम्बी व इलाहाबाद प्रशासन से अपील करती है कि लोगों को इस सभा में पहुंचने से न रोकें और बसपा के माफिया गुण्डों के कहने पर नहीं, संविधान पर अमल करें।

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