06 दिसंबर 2009

सितमगर को याद करो छह दिसम्बर को याद करो

एहसान हसन*

सच्चे झूटे इंतखाबात की कहानी में
दिल बहुत टूटे हंै इस हुक्मरानी में


पाक हो के आयें पैराहन पेरिस से
फिर लगे कोई सुर्ख गुलाब शेरवानी में


एक शख्स की सियासी ज़िद के आगे
लुट गयी मादरे हिंद भरी जवानी में


बदला तर्ज़ सियासी फिर हमने देखा चैरासी
जल उट्ठे सरदार कुछ असरदारों की मनमानी में


सितमगर को याद करो छह दिसम्बर को याद करो
कितना खून बहा मरकज़ और सूबे की आनाकानी में


गोधरा में उस रात को फिर महीनों गुजरात को
किसने फॅूंका किसने फाड़ा किसकी निगहबानी में


जम्हूरियत की ये लाश ढोते फिरोगे कब तक
वक़्त है अब भी लगा दो आग राजधानी में

* कैफी आज़मी पर डाक्टरी पा चुके, ‘‘टिपीकल इलाहाबादी’’ एहसान हसन शौकिया नहीं जबरिया शायर हैं।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

सही कहा आपने ...मगर आग लगाने वाली बात पर हुकूमत ने अमल करना शुरू कर दिया है..

अपना समय