10 जनवरी 2010

अयोध्या : साझी विरासत का प्रतीक

युगलकिशोर शरण शास्त्री

अयोध्या वह गौरवशाली तीर्थ है जिन्हें सप्तपुरियों में श्रेष्ठ माना जाता है। धर्मग्रन्थों एवं पूर्ववर्ती सन्तों ने इस तीर्थ की महिमा का खूब बखान किया है। शास्त्रों में अयोध्यापुरी को सभी तीर्थों का मस्तक कहा गया है। महान रसिक सन्त स्वामी युगलानन्य शरण जी महाराज को इस तीर्थ के प्रति इतनी निष्ठा थी कि वे कहते थे कि ‘‘अवधपुरी की डोमड़ा और जगह के भूप’यानि अन्य जगहों के राजा की जो प्रतिष्ठा है उतना ही यहाँ के डोम का है। वे और भी आगे बढ़कर कहते थ कि ‘बन्दौ अवध के तुर्का’ यानि अयोध्या के मुसलमान वन्दनीय है। यही कारण हो सकता है कि गोस्वामी तुलसीदास यहाँ के मुस्लिम हिन्दू और मन्दिर मस्जिद में कभी भेद नहीं करते थे। वे यहाँ के मस्जिदों में रात्रि में चैन से सोते थे।
अयोध्या को तीर्थों में सिरमौर कहा गया है तो इसके पीछे कारण भी है। अयोध्या शब्द ही अ युद्ध से बना है जिसका अर्थ होता है जहाँ युद्ध नहीं होता,दंगा और फसाद नहीं होता याानि सभी लोग मिलजुल कर रहते हैं। यह साझी विरासत का प्रमुख केन्द्र है। सभी धर्म और मजहबों के केन्द्र के रूप में सिर्फ अयोध्या ही प्रतिष्ठित है। ब्रह्मामुहूर्त में मंदिरों से भगवान श्री सीताराम की आरती के समय घन्टा,घड़ियाल की आवाज और मस्जिदों से नमाज तथा सिक्ख गुरूद्वारा से गुरूवाणी की आवाज बरबस मन को अध्यात्म की ओर प्रेरित करती है। यहाँ पर हिन्दुओं का राम नवमी महोत्सव,सावन झूला,कार्तिक मेला,चैदहकोसी, पंचकोसी परिक्रमा,ब्याह पंचमी आदि पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दूसरी ओर सिक्ख पंथ के लोग गुरूगोविन्द सिंह और गुरूतेगबहादुर की जयन्ती भी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। मुस्लिमों की ओर से प्रतिवर्ष यहाँ पर जुलूस ए मुहम्मदी, मुर्हरम पर ताजिया का जुलूस निकाला जाता है। इसके बावजूद कभी मजहबी तनाव नहीं होता। अभी तक किसी के तरफ से एक दूसरे के विरूद्ध आपत्ति नहीं की गयी। यह साझी विरासत और साझी सोच का जीता जागता उदाहरण है। अयोध्या के मुस्लिम बैण्डवाले विभिन्न उत्सवों पर मठ मन्दिरों में अपने बैण्ड बाजों से भगवान का सम्मन करते हैं। मठ, मन्दिरों के साधु सन्तों के लिए खड़ाऊँ बनाते हैं, मंदिरों में विराजमान श्री विग्रहों के लिए सुगन्धित पुष्पों को बगिया से चुन चुन कर मनमोहक आकर्षक और रंगबिरंगी माला गूंथते हैं।
आधुनिक अयोध्या के संजोने,संवारने में मुस्लिम शासकों का भारी योगदान रहा है। रामकोट में स्थित राम गुलेला मंदिर को नवाब शासक सिराजुद्दौला ने 55 बीघा दिया था। निर्मोही अखाड़ा को उन्होंने चार सहस्त्र सोने की मुद्रा दिया। चक्रवर्ती दशरथ जी का राम महल जिन्हें हम बड़ी जगह भी कहते हैं कि सिंह दरवाजे को मुस्लिम शासक जोमी नरेश ने बनाया था और मंदिर की रखरखाव के लिए 1100 बीघा जमीन दान में दिया था। लक्ष्मण किला,सद्गुरू सदन गोलाबाढ, स्वामी अखाड़ा आदि मंदिरों के रख रखाव में नवाबों ने भारी योगदान किया था।
किसी की तीर्थ के खूबसूरती का आंकलन इससे नहीं किया जा सकता है कि उक्त तीर्थ में काफी धन है और आलीशान मंदिर है। बल्कि पवित्र स्थलों के खूबसूरती तो यह है कि उक्त स्थान के मनुष्य एक दूसरे के कितना प्रेम करते हैं। विभिन्न धर्म और मजहबों के लोगों की आपसी रिश्ते कैसे हैं। इस तात्विक सोच के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अयोध्या अधिक वैभवशाली है क्योंकि यहाँ की सोच साझी है। यहाँ पर विभिन्न धर्म और मजहबों के धरोहर भी यही कहते हैं।
अयोध्या की साझी विरासत इतना मजबूत है कि 06 दिसम्बर 92 की घटना भी आपसी रिश्ते को तोड़ नहीं पायी। उस दिन बाहरी लोगों ने 16 मुसलमानों को जिन्दा जलाया लगभग 200 मुस्लिम मकानों को आग के हवाले कर दिया गया। न्यायालय में विचाराधीन विवादित पूजागृह को तोड़ा गया। उपद्रवी तत्व जब अयोध्या से चले गये तो अयोध्या फिर हरी भरी हो गयी। आज हिन्दू मुसलमानों में कोई आपसी कड़ुवाहट नहीं है। लोग एक दूसरे के शादी ब्याह में शरीक हो रहे हैं।
सन् 1947 से अब तक अयोध्या में कोई दंगा नहीं हुआ। 06 दिसम्बर 92 की घटना में सिर्फ बाहरी लोेग ही थे। इन बाहरी उपद्रवी तत्वों से बचाव में अयोध्या के तमाम मुसलमानों के विरूद्ध उपद्रवी कारसेवकों को मुस्लिमों का घर चिन्हित करने में लगे थे। आज इन तत्वों को समाज के सामने सरनीचा करना पड़ रहा है। शाह इब्राहीम शाह की मजार और लक्ष्मणघाट पास पास में ही है कभी भी आपसी तनाव नहीं हुआ। मणिपर्वत के पास स्थित शीश पैगम्बर हिन्दू और मुस्लिमों के मेलमिलाप का केन्द्र बन चुका है। यहाँ पर दोनों समुदायों के लोग इबादत करते हैं,चादरें चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति करते हैं।
आज भी जो लोेग अयोध्या में साम्प्रदायिकता की रोटी सेंक रहे हैं वे सभी बाहरी लेाग हैं। ऐसे लोगों से स्थानीय लोगों ने अपने को अलग कर लिया है। यहाँ की जनता उनके कारगुजारियों को भली भाँति परख चुकी है। कोई इन तत्वों को तवज्जो देना तक पसन्द नहीं करता। स्थानीय लोग इन फिरकापरस्त लोगों की कद्र नहंी करते यह साझी विरासत की जीत है। कट्टरपंथी ताकतें आज भी मंदिर मस्जिद के नाम पर अपना सिक्का जमाने के लिए अयोध्या में सदैव प्रयासरत है। यदि धर्म निरपेक्ष ताकतें हाथ पर हाथ धरे बैठे रह गये तो हमारी साझी विरासत को भारी नुकसान पहुँच सकता है। हमें सजग और सक्रिय रहने की जरूरत है। इस दिशा में अयोध्या की आवाज, आशा परिवार के मैग्सेेसे पुरस्कारलब्ध संदीप पाण्डेय, सी0एस0एस0एस0 के असगर अली इंजीनियर, प्रो0 राम पुनियानी आदि देश के तमाम संस्थायें और सामाजिक कार्यकत्र्ता उपद्रवी तत्वों को मुँहतोड़ जवाब देते आ रहे हैं। यह धर्म निरपेक्ष अमन चैन पंसदीदा लोगों के लिए शुभ बात है।

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