भाई शहरोज़ के ब्लॉग पर संदीप का यह पोस्ट इस कमेन्ट के साथ प्रकाशित है - बहनो! ड्रेस कोड की तलवार महज़ आप पर ही नहीं लटकती, भाई की नौकरी तक चली जाती है। तुमने दाढ़ी क्यों रखी? वामपंथी कहे जानेवाले कई कवि, पत्रकार, कथाकार और संपादक साथियों के इस सवाल से मुझे भी कई बार कोफ़्त हुई है। वरिष्ठ सहकर्मियों ने बार-बार सताया है और तंग आकर एक बड़े प्रकाशन की नौकरी मुझे छोड़नी पड़ी है। उस कमल का राज मैं नही भोग पाया। दो साल होने को आए तब से बेरोज़गार हूं। लोग कहते हैं कि नौकरी हासिल करने में मेरी दाढ़ी बाधक है! अब संदीप का अनुभव सुने -
संदीप कुमार मील
‘अयोध्या’ हमेशा से इस देश के राजनीतिक गलियारों में फुटबाल की तरह उछाला जाता है। साम्प्रदायिक ताकतों ने जिस तरह से अयोध्या को लेकर अपने तुच्छ स्वार्थों की रोटी सेकी है, वो हमारे देश की धर्मनिरपेक्षता पर ही सवाल खड़ा कर देती है। अभी लिब्राहन आयोग की रिर्पोट ने फिर से इस आग को हवा देने का काम किया है। इसी वक्त संयोग से अयोध्या जाना हो गया। अयोध्या व फैजाबाद के कुछ साथी अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ व प. रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत पर पिछले तीन सालों से हर साल एक फिल्म समारोह का आयोजन करते आ रहे है।
अमर शहीद अशफाक उल्ला व राम प्रसाद बिस्मिल ने धर्म से ऊपर उठकर जिस प्रकार से अग्रेंजी हुकुमत से संघर्ष किया था, उसी सांझी विरासत को कायम करने और धार्मिक सौहार्द व भाईचारे को बढावा देने के लिए आयोजित तीसरे अयोध्या फिल्म उत्सव में मुझे भी जाने का सुयोग मिला।
फिल्म उत्सव के उदघाटनीय सत्र की समाप्ति के बाद मैंने दोस्तों से विवादित स्थल को देखने की इच्छा जताई । साथी गुफरान भाई ने अपनी मोटर साईकिल पर बैठाकर मुझे महंत युगलकिशोर शास्त्री जी के पास लाये और कहा कि उनका जाना ठीक नहीं है, मैं अकेला ही शास्त्री जी के किसी आदमी के साथ दर्शन कर आऊं । शास्त्री जी ने एक आदमी को मेरे साथ कर दिया कि इन्हें दर्शन करा दीजिये। मैं, गुफरान भाई और शास्त्री जी के मित्र तीनों, शास्त्री जी के घर से कुछ ही कदम चले थे, कि पीछे से दो लोगों ने आकर हमें रोक लिया । गुफरान भाई ने अपना नाम बताया और वह फैजाबाद के रहने वाले हैं । एक व्यक्ति ने मेरी तरफ इशारा करके कहा, ‘तब तो यह जरूर कश्मीर के होंगे ।’ मैंने पूछा, ‘आप कौन हुए इस तरह हमारे बारे में पूछने वाले । उनका जवाबः ‘हम इंटेलिजेंस के आदमी है।’ दूसरे ने तुरन्त पुछा कि , ‘तुम्हारा नाम क्या है?’जब ‘संदीप’ नाम सुना तो उनका शक और गहरा हुआ । मेरी दाढ़ी में उन्हें पता नही क्या क्या दिखने लगा। कई उल्टे-पुल्टे सवाल करने लगे।
जब से दाढ़ी आयी है मुझे रखने का शौक रहा है । मगर आज अहसास हुआ कि दाढ़ी रखने से आम आदमी ही नहीं इंटेलिजेंस वाले भी शक की निगाहों से देखने लग जाते है। घर का पता , फोन नम्बर से लेकर अन्य कई जानकारियां उन्होंने मुझसे ली। काफी तलाशी ली लेकिन मेरे पास ऐसा कोई लिखित दस्तावेज ही नहीं था कि जो उनके लिए प्रमाण बनता।
जिस में लिखा हो कि मैं आंतकवादी नहीं हूं। तुरन्त मेरी पहचान को लेकर जांच शुरू हो गई। अयोध्या आने से लेकर ठहरने तक के स्थानों की जांच पडताल । फिर मुझे विवादित जगह पर जाने के लिए तो बोल दिया मगर इंटेलिजेंस वाले 100 कदम की दूरी पर पीछे-पीछे चल रहे थे । हर पुलिस वाला मुझे नजर गड़ाकर देख रहा था। जब विवादित जगह पहंचा तो सबकी थोड़ी- बहुत जांच हो रही थी, मगर दाढ़ी को देखकर मेरी आधा घण्टे गेट पर ही पूरी जन्मपत्री खंखाली गई। जब गेट से आगे पहुंचा तो फिर पुलिस ने मुझे एक तरफ ले जाकर पूछताछ शुरू कर दी । मेरा पर्स निकाल कर तमाम कांटेक्ट नम्बरों को सर्च किया गया और मुझे सवाल किया कि ‘ इन सब का एक ही कारण था- दाढ़ी । मेरे जेब से एक पुरानी रसीद निकली। शर्ट के साथ धुलने के कारण उस पर कुछ लकीर सी दिख रही थी। एक पुलिस वाला बोला, ’यह किसका नक्शा है।’ मैंने बताया कि कोई रसीद है जो शर्ट के साथ धुल गई। उस पुलिस वाले से मैंने प्रतिप्रश्न किया, ‘आखिर आप मुझे इतना चेक क्यों कर रहे है?’ उत्तर वही था कि तुम्हारी दाढ़ी है और तुम आंतकवादी हो सकते हो। जिन्दगी में पहली बार मुझे दाढ़ी के महत्व का अहसास हो रहा था। किसी आम आदमी ने मुझसे दाढ़ी को लेकर कभी कोई सवाल नहीं किया। लेकिन पुलिस ने तीन घण्टे तक एक ही सवाल में उलझाया रखा कि ‘ये दाढ़ी क्यों है?’ अब मैं उन्हें कैसे समझाता कि भाई साहब । यह मेरा शौक है और आजाद भारत में कोई भी आदमी दाढ़ी बढा़ कर घूम सकता है।
जब विवादित ढांचे पर पंहुचा तो पण्डित भी प्रसाद देते हुए मुझे गौर से देख रहा था। प्रसाद लेकर मैं बाहर निकल रहा था कि अचानक बन्दर ने मेरे हाथ से प्रसाद छीन लिया ।
दिल में आया कि भाई बन्दर ! ये दाढ़ी भी दो-चार घण्टे के लिए तुम छीन कर ले जाओ तो इस मुसीबत से तो छुटकारा मिले। सुरक्षा के नाम पर सरकार 8 करोड़ रुपये हर महीने अयोध्या में खर्च करती है मगर वहां के विकास का स्तर देख कर सब समझ में आ जाता है। खैर, सरकार जाने, उसकी सुरक्षा जाने पर मेरी दाढ़ी पर तो कम से कम मेरा हक है कि मैं कटाऊँ या फिर बढ़ाऊँ। विवादित स्थल से बाहर निकले तो इंटेलिजेंस वाले तैयार खड़े थे, बोले, ‘अब क्या प्लान है, सब जानकारी दो।’ मैने कहा,‘भाई! सीधा दिल्ली जाऊंगा।’
गुफरान भाई ने बताया कि स्थिति बहुत भयानक है, धर्म के ठेकेदारों के साथ-साथ पुलिस भी हिटलरशाही के रंग में रंगी हुई है। शाम को जब ट्रेन से वापस लौट रहा था तब विदा करते समय गुफरान भाई ने कहा था,‘ संदीप भाई! दाढ़ी बनवा लेना यार .....................
1 टिप्पणी:
bhut hi achhei bat liki tumne.......
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