अंबरीश कुमार
लखनऊ । शुक्रवार को लखनऊ के कलेक्टर ने एक कर्मचारी को गुस्से में आकर झापड़ मारा तो दो दिन पहले लखनऊ के डीआईजी प्रदर्शन करने वालों पर खुद लाठी भांज रहे थे । इससे पहले इलाहाबाद के डीआईजी के पास खीरी थाना का एक मजदूर नेता जो फ़रियाद लेकर उनके पास पहुंचा तो उन्होंने पूछा ,किस जाति के हो ,जवाब मिला ' मल्लाह ' । इस पर आग बबूला डीआईजी ने कहा, तुम साले .........लाल सलाम के आदमी हो। तुम सभी का .....कर दूंगा । ' आगे की बातचीत में गालियाँ ,धमकी और एनकाउंटर जैसे सभी पुलिसिया तत्त्व मौजूद थे। इस सबकी शिकायत मानवाधिकार संगठन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से करते हुए संबंधित लोगो की सुरक्षा की मांग की है । यह बानगी है उत्तर प्रदेश में बेलगाम होती नौकरशाही की। समाजवादी पार्टी पिछली बार जिन वजहों से सत्ता से बेदखल हुई उनमे समाजवादी बाहुबलियों का बेलगाम होना भी था । सर्वजन के राज में यह जिम्मा मायावती के अफसरों ने संभाल लिया है । मुलायम सिंह को सत्ता से हटने के बाद इसका अहसास हुआ तो मायावत को बाद में होगा । जो सत्ता में रहता है उसे सत्ता के दंभ में यह सब बाते महसूस भी नहीं होती । प्रदेश में सर्वजन की बसपा सरकार में नौकरशाह भी अब बेलगाम हो चले हैं। इलाकाई पुलिस से लेकर पुलिस के आला अधिकारियों की चौखट पर फरियादी न्याय पाने की जगह गाली-गलौज और दुत्कार के शिकार हो रहे हैं।
लखनऊ में कर्मचारी को झापड़ मरने का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है । कलेक्टर अमित घोष हड़ताली कर्मचारिओं को काबू करने निकले थे खून इतने बेकाबू हो
गए कि एक कर्मचारी को थप्पड़ रसीद कर डाला । इस पर कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा के नेता आरके निगम ,सतीश पांडेय और सुरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने कहा ,इस मामले में कलेक्टर अमित घोष के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए । ' हलाकि पुलिस ने दावा किया है कि कलेटर के खिलाफ कोई शिकायत किसी कर्मचारी ने दर्ज नहीं कराई है । यदि ऐसा होता है तो कानून के हिसाब से कार्यवाही की जाएगी ।जिस कर्मचारी को डीएम ने थप्पड़ मारा था आज उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। कर्मचारी रामप्रकाश को ड्यूटी पर लापरवाही बरतने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
उधर इसी हफ्ते इलाहाबाद में खीरी थाना क्षेत्र के रहने वाले राज कुमार निषाद भी इसके ताजा शिकार हुए। उनका कसूर यह था कि उन्होंने खीरी थानाध्यक्ष की वसूली के खिलाफ सैकड़ों मजदूरों के साथ डीआईजी से फरियाद करने आए थे।मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने इसका पूरा ब्यौरा दिया । इसकी जानकारी मानवाधिकार आयोग को भी भेजी गई है । जिसके मुताबिक खीरी थानाध्यक्ष की वसूली के खिलाफ सैकड़ों मजदूरों के साथ डीआईजी से फरियाद करने गए राज कुमार पुलिस के व्यवहार से आतंकित है । उन्होंने डीआईजी को सौपे पत्रक में कहा -खीरी थानाध्यक्ष द्वारा वसूली न रोकने पर जब मैंने उनसे कहा कि इसकी शिकायत मैं डीआईजी से करुंगा तो थानाध्यक्ष ने कहा कि साहब को भी मैं पहुंचाता हूं, मेरा कोई कुछ नहीं कर सकता। इतना सुनते ही डीआई जी चंद्र प्रकाश आगबबूला हो गए और पूछे किस जाति के हो। भुक्तभोगी मजदूर के इताना कहते ही कि मल्लाह जाति का हूं तो डीआईजी ने कहा, तुम साले लाल सलाम के आदमी हो। ज्यादा उछल-कूद न करने की चेतावनी देते हुए उन्होंने उसे खामोश रहने को कहा ।
इलाहबाद ,सोनभद्र ,चंदौली जैसे जिलों में तो पुलिस नक्सली और माओवादी बताकर मुठभेड़ में मार देने की धमकी देती रहती है । इसमें भी इलाहाबाद में भाकपा माले और वामपंथी धारा की वह पार्टियाँ जैसे माले ,न्यू डेमोक्रेसी आदि पुलिस के निशाने पर है । इन सभी को लाल सलाम कहा जाता है। लाल सलाम मीडिया और पुलिस के एक वर्ग का दिया नाम है । जो भी किसान मजदूर के लिए ईमानदारी से लड़े और सामाजिक बदलाव की बात करे उसपर नक्सली या माओवादी जो भी शब्द ठीक लगे चस्पा कर दिया जाता है । मीडिया का वह तबका जो पुलिस बुलेटिन से पत्रकारिता सीखता है वह इस काम में सबसे आगे है ।लाल नाम से भड़कती पुलिस का एक और उदाहरण खदान मजदूर यूनियन के महासचिव राधेश्याम यादव ने दिया । उन्होंने बताया कि पिछले दिनों जब वे माघ मेले में हजारों की तादाद में आए दलित आदिवासी खदान मजदूरों का सम्मेलन कर रहे थे तो किसी भी लोकतांत्रिक आंदोलन को नक्सली बताकर दमन करने पर उतारु प्रशासन ने उन्हें लाल कपड़े पर लिखे बैनरों के नाम पर लाल सलाम गुट का कहते हुए कार्यक्रम को बाधित किया।
राजकुमार मामले में प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के राजनीतिक सलाहकार रहे किसान मंच के उपाध्यक्ष हृदय नारायण शुक्ला ने डीआईजी की इस भाषा पर आपत्ति दर्ज की तो डीआईजी की शह पर वहां मौजूद मातहतों ने कहा कि इन सब लाल सलाम का नारा लगाने वालों को चुन-चुनकर एनकाउंटर किया जाएगा। इस पूरी घटना को पीयूसीएल ने संज्ञान में लेते हुए मानवाधिकार आयोग से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। पत्र में पीयूसीएल के प्रदेश संगठन मंत्री शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि पूरे वैश्विक स्तर पर वामपंथियों का अभिवादन का प्रतीक ही लाल सलाम है पर आज इलाहाबाद के डीआईजी इसे एक हौव्वा बनाकर सरकार के इशारे पर जनांदोलनों के दमन पर आमादा हैं।
पीयूसीएल ने अपने पत्र में कहा है कि शहर मुख्यालय से पैंतीस-चालीस किलोमीटर दूर कड़ाके की ठंड में खनन कर रहे मजदूरों से हर खेप पर तीन सौ से चार सौ रुपए पुलिस की शह पर दबगों द्वारा वसूला जाता है। पहले भी पीयूसीएल ने यह आरोप लगाया है कि हाई कोर्ट के आदेश को ताक पर रखकर प्रशासन अवैध बालू खनन मशीनों को चलावा रहा है। जबकि कोर्ट का आदेश है कि खनन में किसी तरह की मशीनों का प्रयोग नहीं किया जाएगा। प्रशासन खुलेआम न्यायलय की अवमानना कर रहा है। किसान मंच के उपाध्यक्ष हृदय नारायण शुक्ला ने कहा कि यमुना पार के इलाके से मैं पिछले तीन दशक से परिचित हूं। इस इलाके से चलने वाली खनन से सरकार को करोड़ो रुपए राजस्व प्राप्त होता है। पर यहां पर बदहाली और बीमारी से सैकड़ो लोग मौत का शिकार हो रहे हैं पर इनका हाल पूछने वाला कोई नहीं है। पर आला अफसर आतंक जरुर फैला रहे है ।
चितरंजन सिंह ने कहा कि नकसलवाद की आड़ में जनतांत्रिक आंदोलनों के दमन की खुली छूट प्रदेश सरकार ने प्रशासन को दे रखी है, जो आउट आफ टर्न प्रमोशन के लिए लोकतांत्रिक जनआंदोलनों के नेताओं के फर्जी एनकाउंटर के फिराक में रहती है। पीयूसीएल ने अपनी जांच में पाया है कि इस यमुना पार के पूरे क्षेत्र को प्रशासन ने इसी रणनीति के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। लाल सलाम बोलने वालों को नक्सल कह दरअसल सरकार एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। इस पूरे क्षेत्र में लम्बे समय से वामपंथी धारा के अनेक दल सक्रिय हैं जिनका आधार दलितों और आदिवासियों के बीच है। इन जातियों के जो लोग सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं उनको नक्सलाइट कह कर तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि इस पूरे क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी वामपंथी दल संसदीय प्रणाली में आस्था रखते हुए चुनाव प्रक्रिया में भाग लेते हैं। जनसत्ता
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