वो आज भी क्लास की पिछली सीट पर बैठते हैं ,आज भी उन्हें अपने जैसे ही अन्य छात्रों के साथ बैठकर खाना खाने से डर लगता है ,आज भी उन्हें हमेशा इस बात का डर होता है कि किसी भी वक़्त किसी भी बात को लेकर उनकी सारी काबिलियत को धत्ता बताए हुए ,उनके सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया जायेगा ,हम बात कर रहे हैं दलितों की सरकार में दलित छात्रों की |आज भी प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों में सर्वाधिक सप्लीमेंट्री दलित छात्रों की ही लगती हैं आज भी उन्हें सेशनल में अन्य छात्रों से कम नंबर मिलते हैं ,आज भी इंजीनियरिंगके क्षेत्र में किये गए उनके महत्वपूर्ण शोधों को उनके प्राध्यापक नकार कर उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं |चंदौली पोलिटेक्निक में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का छात्र राकेश कॉलेज के मेस में खाना नहीं खा सकता ,वो और उसके साथी किसी भी सवर्ण छात्र के साथ एक कमरे में नहीं रह सकते ,लखनऊ स्थित आई टी में पिछले ५ वर्षों के आंकड़ों को देखा जाए तो प्रोजेक्ट वर्क में सबसे कम नंबर दलित छात्रों को ही मिले हैं ,यहाँ के छात्र हमेशा खौफ में रहते हैं कि कब न उनके स्वर्ण प्राध्यापक का डंडा उनके ऊपर चल जाए |रैगिंग का भी सर्वाधिक शिकार दलित छात्र ही होते हैं ,काशी हिन्दू विश्वव्दियालय के नवागत छात्रों ने बातचीत के दौरान बताया कि सेनियर छात्रों द्वारा उनकी रैगिंग के दौरान न सिर्फ उनकी पिटाई की जाती थी ,बल्कि जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर तरह तरह से मानसिक उत्पीडन भी किया जाता था ,इतनी दहशत पैदा कर दी जाती थी की वो इसकी शिकायत किसी से भी न कर सकें |हालाँकि फिर भी हिम्मत करके कुछ एक छात्रों ने प्राथमिकी दर्ज करायी और पुलिस द्वारा कार्यवाही भी की गयी ,लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि प्राथमिकी दर्ज कराने वाले छात्रों का अन्य छात्रों ने बहिष्कार कर दिया,हमीरपुर में पोलिटेक्निक के नवागत दलित छात्रों को रैग्गिंग का दौरान चलती ट्रेन के सामने नंगा होने को कहा गया |

शिक्षण संस्थाओं में बेहद आश्चर्यजनक ढंग से मौजूद जाति -पाति का ये ताना बाना अपने साथ शोषण और उत्पीडन के तमाम अनकहे किस्से तो तैयार कर ही रहा है ,एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जिसमे जाति बिरादरी की वजह से हाशिये पर धकेल दिए जाने और तमाम अवसरों से वंचित किये जाने की कुंठा उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है |मौजूदा व्यस्था में फिलहाल इस कुंठा का कोई परिमार्जन नहीं दिखता ,आरक्षण या दलितों के वोट बैंक से बनी सरकार के माध्यम से तो बिलकुल ही नहीं |
कहानी अनूप की
बनारस में बेबस दलित छात्र
साभार कतरने
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