04 फ़रवरी 2010

वो आज भी क्लास की पिछली सीट पर बैठते हैं

आवेश
वो आज भी क्लास की पिछली सीट पर बैठते हैं ,आज भी उन्हें अपने जैसे ही अन्य छात्रों के साथ बैठकर खाना खाने से डर लगता है ,आज भी उन्हें हमेशा इस बात का डर होता है कि किसी भी वक़्त किसी भी बात को लेकर उनकी सारी काबिलियत को धत्ता बताए हुए ,उनके सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया जायेगा ,हम बात कर रहे हैं दलितों की सरकार में दलित छात्रों की |आज भी प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों में सर्वाधिक सप्लीमेंट्री दलित छात्रों की ही लगती हैं आज भी उन्हें सेशनल में अन्य छात्रों से कम नंबर मिलते हैं ,आज भी इंजीनियरिंगके क्षेत्र में किये गए उनके महत्वपूर्ण शोधों को उनके प्राध्यापक नकार कर उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं |चंदौली पोलिटेक्निक में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का छात्र राकेश कॉलेज के मेस में खाना नहीं खा सकता ,वो और उसके साथी किसी भी सवर्ण छात्र के साथ एक कमरे में नहीं रह सकते ,लखनऊ स्थित आई टी में पिछले ५ वर्षों के आंकड़ों को देखा जाए तो प्रोजेक्ट वर्क में सबसे कम नंबर दलित छात्रों को ही मिले हैं ,यहाँ के छात्र हमेशा खौफ में रहते हैं कि कब न उनके स्वर्ण प्राध्यापक का डंडा उनके ऊपर चल जाए |रैगिंग का भी सर्वाधिक शिकार दलित छात्र ही होते हैं ,काशी हिन्दू विश्वव्दियालय के नवागत छात्रों ने बातचीत के दौरान बताया कि सेनियर छात्रों द्वारा उनकी रैगिंग के दौरान न सिर्फ उनकी पिटाई की जाती थी ,बल्कि जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर तरह तरह से मानसिक उत्पीडन भी किया जाता था ,इतनी दहशत पैदा कर दी जाती थी की वो इसकी शिकायत किसी से भी न कर सकें |हालाँकि फिर भी हिम्मत करके कुछ एक छात्रों ने प्राथमिकी दर्ज करायी और पुलिस द्वारा कार्यवाही भी की गयी ,लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि प्राथमिकी दर्ज कराने वाले छात्रों का अन्य छात्रों ने बहिष्कार कर दिया,हमीरपुर में पोलिटेक्निक के नवागत दलित छात्रों को रैग्गिंग का दौरान चलती ट्रेन के सामने नंगा होने को कहा गया |

क्या इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज क्या सरकारी गैर सरकारी विश्वविद्यालय हर जगह माहौल पहले जैसा ही है ,उत्तर प्रदेश में जाति-बिरादरी के नाम पर सरकारें तो बार बार बनी ,लेकिन इन सरकारों से न तो इन उच्च शिक्षण संस्थाओं का चरित्र बदला और न ही दलित छात्रों के लिए जाति बिरदारी का दुश्चक्र तोडना संभव हो पाया ,सत्ता ने आरक्षण देकर उनका कैम्पस में प्रवेश तो आसान बना दिया लेकिन हालात फिर भी ज्यों के त्यों रहे |सबसे दुखद ये रहा कि विश्विद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थाओं में छात्रों के साथ हो रहे जातिगत मतभेद को प्राध्यापकों और प्रबंधन ने ही बढ़ावा दिया,अभी हाल में ट्रिपल आई टी इलाहाबाद में जब तीन दलित छात्रों को निकला गया तो पाता चला कि इस बड़े तकनीकी संस्थान में सभी शिक्षक सवर्ण है इस स्वयात्साशी संस्था में निदेशक ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कभी किसी पिछड़े या दलित शिक्षक को संस्था में प्रवेश ही नहीं दिया |यही हाल कानपुर विश्विद्यालय का है ,जहाँ शोध के तमाम छात्र अपनी बिरादरी की वजह से सालों सालों से अपने गाइड की चरण वंदना कर रहे हैं ,लेकिन शोध है कि पूरा नहीं होता वहां के एक छात्र कहते हैं हम लाख मेहनत कर लें,उन्हें हमारे काम में कमी ही नजर आती है | गाजियाबाद स्थित एक प्रबंध संस्थान ने तो सारी हदें पार करते हुए एक दलित छात्र प्रेम नारायण को न सिर्फ प्रवेश देने से इनकार कर दिया,बल्कि उसे अन्य छात्रों के सामने संस्थान के प्रिंसिपल द्वारा भद्दी भद्दी गालियाँ भी दी गयी ,कसूर सिर्फ ये था की उसके पास डोनेशन के लिए दिए जाने वाले ४५ हजार रूपए मौजूद नहीं थे ,हलाकि बाद में इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी |सिर्फ इतना हे नहीं है दलित छात्रों को उनके लिए निर्धारित स्कोलरशिप देने में तम तरह के रोड़े अटकाए जाते हैं प्रदेश सरकार ने इंजीनियरिंग, मेडिकल तथा व्यवसायिक महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत अनुसूचित जाति, जनजाति के छात्र-छात्राओं से प्रवेश के समय शुल्क न लिए जाने के लिए पूर्व में एक शासनादेश जारी किया था ,मगर अफ़सोस कोई भी स्वायतशासी उच्च शिक्षण संस्थान या फिर मान्यता प्राप्त निजी विद्यालय इस आदेश का पालन नहीं करते |

शिक्षण संस्थाओं में बेहद आश्चर्यजनक ढंग से मौजूद जाति -पाति का ये ताना बाना अपने साथ शोषण और उत्पीडन के तमाम अनकहे किस्से तो तैयार कर ही रहा है ,एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जिसमे जाति बिरादरी की वजह से हाशिये पर धकेल दिए जाने और तमाम अवसरों से वंचित किये जाने की कुंठा उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है |मौजूदा व्यस्था में फिलहाल इस कुंठा का कोई परिमार्जन नहीं दिखता ,आरक्षण या दलितों के वोट बैंक से बनी सरकार के माध्यम से तो बिलकुल ही नहीं |
कहानी अनूप की
बनारस में बेबस दलित छात्र


साभार कतरने

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