14 मार्च 2010

आरटीआई प्रयोग करने वालों युवकों को मिली धमकियां

ऋषि कुमार सिंह
सूचना अधिकार कानून अस्तित्व में आया तो कहने वालों ने इसे लोकतंत्र का एक अहम पड़ाव कहा। यह महज आकलन था,जो गोपनीयता के विरूद्ध एक हद तक सही था,लेकिन नौकरशाही ने इस पूरे कानून पर समय गुजरने के साथ प्रश्न चिह्न लगा दिया है। एक तरफ सरकारें बड़े-बड़े विज्ञापनों और कार्यक्रमों के जरिए सूचना अधिकार कानून का इस्तेमाल बढ़ाने प्रचार कर रही हैं,तो दूसरी तरफ इन्ही सरकारों के लोक सूचना अधिकारी सूचनाओं को देने से इंकार कर रहे हैं। सूचना अधिकार के प्रयोग में तेजी देखी जा रही है,लेकिन साथ ही ऐसी घटनाएं भी बढ़ी हैं,जिसमें सूचना अधिकार का प्रयोग करने वालों को सत्ता और सम्बंधित अन्य पक्षों से सीधे नुकसान पहुंचाया गया है।
सूचना अधिकार कार्यकर्ता सतीश शेट्टी का मारा जाना सूचना को अधिकार के रूप में देने का दावा करने वाली व्यवस्था और उसकी नियति को कटघरे में खडा करता है। कमोवेश अब सूचना अधिकार का प्रयोग करने वाले लोगों को इसी तरह का डर सताने लगा है। ताजा घटनाक्रम में उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले का है। जो नेताओं और नौकरशाही की मिली भगत से जबरदस्त लूट का शिकार है। सड़कें खेतों की तरह खोद दी गई हैं और लोग अपने घुटने तोड़ने को मजबूर हैं। यकीन कीजिये ये उपमा अलंकार का प्रयोग नहीं,बल्कि शहर के मुख्य मार्ग की हालत है,जिसे निर्माण के लिए सिर्फ तोड़ने की जिम्मेदारी निभाई गई है। इस जिले का दुरभाग्य यहां की निरक्षता और राजनीति का दलाली में बदल जाना है। मुद्दे पर लौटते हैं। शहर से महज आठ किमी दूर की ग्रामसभा टेंडवा बसंतापुर के दो नवयुवकों ने सूचना अधिकार कानून का प्रयोग करते हुए ग्राम प्रधान से कुछ जानकारियां तलब की हैं। इसी बात से खफा ग्रामप्रधान का पति न केवल उन्हें जान से मारने की धमकी दे रहा है,बल्कि स्थानीय पुलिस चौकी से साठगांठ कर चौकी की तरफ से भी धमकियां भिजवा रहा है। जाहिर है उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार की हालत नाजुक है,ऐसे में दोनों नवयुवकों को मिल रही धमकियों को नजरंदाज करना जान का जोखिम दे सकता है।
इन दोनों नवयुवकों का नाम अनिल सिंह और राजेंद्र सिंह है। साधारण परिवार और साधारण शिक्षा रखने वाले दोनों युवक जान की कीमत पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कमर कसे हुए हैं। दोनों ने ग्रामसभा में फैल भ्रष्टाचार को भांपते हुए न केवल सूचना अधिकार का सहारा लिया,बल्कि उसमें गामसभा की जनता को भी शामिल किया। सूचना अधिकार आवेदन पर दर्जनों अंगूठे के निशान और हस्ताक्षर दर्ज हैं। जो साबित करता है कि सूचना अधिकार आवेदन ग्रामसभा की आवाज है। दोनों नवयुवकों ने सूचना अधिकार के तहत 10 प्रश्नों के तहत जानकारी की मांग की। जिसमें वर्ष 2005 के बाद ग्राम सभा में कराये गये विकास कार्यों का ब्यौरा,मिट्टी कार्य का ब्यौरा,पुलिया निर्माण,नरेगा की परियोजनाओं,खड़ंजा निर्माण,नाली निर्माण,आबंटित कालोनियों का ब्यौरा,बीपीएल सूची,विधवा पेंशन,वृद्दा पेंशन की जानकारी की मांग शामिल है। इसके अलावा नरेगा के तहत जॉब कार्ड,मजदूरी का पेमेंट यानी मास्टर रोल इत्यादि की जानकारी मांगी है। तथ्य है कि पंचायत की मौजूद व्यवस्था में प्रधानपति ही ग्रामप्रधान की सभी सार्वजनिक जिम्मेवारियों का निर्वहन करता है। इसलिए ग्राम सभा के सभी कार्यों में उसका दखल है। लिहाजा जो बात प्रधान के खिलाफ कही जा रही है,उसके लक्ष्य में प्रधानपति की कारस्तानियां है। मजदूरों को सही से मजदूरी न देने और आधे-अधूरे निर्माण कराने या फिर फिजूलखर्ची जैसे कई आरोप ग्रामप्रधान पर हैं।
इस ग्रामसभा में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार उन कामों में हो रहा है,जिसमें टूट फूट या नुकसान की सम्भावना सबसे ज्यादा है। पात्रों का बीपीएल व अंतोदय जैसी योजनाओं का लाभ न मिलना एक भारी शिकायत है। ग्रामसभा टेंडवा बसंतापुर में वर्ष 2008 में वानिकीकरण के तहत बहत्तर हजार रुपये खर्च करके 57 ब्रिकगार्ड बनवाये गये,लेकिन न तो ब्रिकगार्ड ही मौके पर सलामत मिले और न ही एक भी पेड़। इस तरह की जानकारियां ग्राम सचिव द्वारा एक अन्य सूचना अधिकार आवेदन के तहत मुहैय्या कराई जा चुकी है,जिसमें ब्रिक गार्ड के कम होने और पेड़ों को नष्ट होने के पीछे अराजकतत्वों को जिम्मेदार बताया गया है। गौरतलब है कि 20-11-08 को पेड़ों का लागत मूल्यांकन किया जाता है,14-11-09 के सूचना आवेदन के जवाब में पेड़ों को नष्ट होने की जानकारी दी जाती है। यानी साल भर के भीतर पेड़ लगाया जाता है,वह हराभरा हो जाता है और अराजक तत्व उसे नष्ट कर देते हैं। कितनी बड़ी साजिश है,समझा जा सकता है।
ब्रिक गार्ड मामले पर प्रधान की सच्चाई सामने आने के बाद जब ग्राम सभा के इन दोनों नवयुवकों राजेंद्र सिंह और अनिल सिंह सूचना अधिकार के तहत विकास कार्यों का व्यौरा मांगा, तो उन्हें ही ब्रिकगार्ड के गिराये जाने के मामले में फंसाने की धमकियां दी जाने लगी हैं। घबराये नवयुवकों ने न केवल प्रशासन से सुरक्षा की मांग की है,बल्कि बहराइच के जिलाधिकारी,पुलिस अधीक्षक और क्षेत्राधिकारी को रजिस्टर्ड डाक के जरिए सूचित भी किया है। हालांकि इन सारी कोशिशों के वावजूद इसके टिकोरा मोड़ पुलिस चौकी के दारोगा ने प्रधान का पक्ष लेते सूचना का अधिकार प्रयोग करने वाले नवयुवकों को धमकाने का सिलसिला जारी है। पूरे मामले पर नजर रख रहे मानवाधिकार संगठन ने पूरी घटना को दुखद बताया है। फिलहाल प्रशासन की तरफ से की जा रही लापरवाही चिंताजनक है।

ऋषि कुमार सिंह न्यूज़ चैनल समय में कार्यरत हैं और जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) से जुड़े हैं. संपर्क - rishi2585@gmail.com

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