सेवा में,
अध्यक्ष
भारतीय प्रेस परिषद
महोदय,
पिछले दिनों अखबार और उसके द्वारा बेची जा रही खबरें काफी चर्चा में रहीं। लेकिन अखबारों द्वारा बेची जा रही खबरों की यह प्रवृत्ति अनवरत चल रही है। जिसको दिन-प्रतिदिन मुझे मेरे जनपद बलिया में झेलना पड़ता है। मैं सामाजिक कार्यकर्ता और विद्यालय का प्रबंधक हूं। मेरे विद्यालय में विभिन्न सामाजिक कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा मैं अपनी संस्था के माध्यम से विभिन्न समाज कल्याण के कार्यक्रम करवाता रहता हूं। जिसकी विज्ञप्ति मैं अपने जिले के दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, आज को भेजता हूं। पर खबर छापने का वह मुझसे सिर्फ खबर के लिए पांच सौ और कार्यक्रम का फोटो छापने के लिए एक हजार की मांग करते हैं। कभी-कभी तो कहते हैं कि पांच हजार का विज्ञापन दीजिए छपता रहेगा बार-बार आपको न पैसा देना पड़ेगा और न ही हमें मांगना पड़ेगा। कई बार मुझे अखबारों के दफ्तरों में जलील होना पड़ा। वे कहते हैं कि पैसा नहीं देते हो, खबर छपवाने का बहुत शौक पाला है। कहते हो कि जेब में पैसा नहीं है तो इतना महंगा कपड़ा कैसे पहनते हो। कई बार मैंने क्षेत्र में स्वास्थ्य शिविर लगवाए तो उसकी खबर देते वक्त पत्रकार कहते हैं कि डाक्टरों को देने के लिए पैसा है हमको देने के लिए नहीं, हमारे यहां खाली हाथ चले आते हो, हमें ता नरेगा से भी कम वेतन मिलता है।
महोदय संवादाताओं द्वारा खबर के लिए पैसा मांगना उनकी मजबूरी भी है क्योंकि किसी को हजार रुपए मिलता है तो किसी को पांच सौ और किसी को मिलता ही नहीं पर उन्हें अपने स्थानीय संपादकों से लेकर उपर तक पैसा पहुंचाना होता है जैसा वे बताते हैं। ऐसे में हम चाहते हैं कि आप तत्काल हस्तक्षेप करते हुए हम जैसों और छोटे पत्रकारों के शोषण को बंद करवाएं। उन्हें न्यूनतम गरिमामय वेतन देने का प्रावधान बनाएं ताकि यह सामाजिक कुरुति रुक सके। या फिर पैसा देकर खबर छपवाने को ही वैध एक नियम और शुल्क निर्धारित कर दिया जाय ताकि न मांगने वाले को लगे की वह कुछ गलत कर रहा है और न देने वाले को लगे कि उसे लूटा जा रहा है।
द्वारा-
जुबैर खान
पुत्र मो0 लाल बाबू खान
हल्दी कोठी के सामने
ग्राम-पोस्ट बहेरी बलिया उ0प्र0
मो0-09919543054, 09580205800
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें