27 सितंबर 2010

ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है असम

एल. एस. हरदेनिया
असम में किसी भी समय कष्मीर जैसी विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वहां पर यह नारा एक बार फिर जोर पकड़ रहा है कि “असम सिर्फ असमी भाषियों का हैैं“ै।
मैंने अभी हाल में असम की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान मुझे राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में जाने का अवसर मिला। चार-दिवसीय यात्रा के दौरान मैंने कम से कम एक हजार ऐसे लोगों से मुलाकात की जो अपने हाथ में एक कागज लिए हुए थे। ये कागज मतदाता सूचियों के पृष्ठ थे। उन पर संबंधित व्यक्ति का नाम लिखा हुआ था परंतु नाम के सामने अंग्रेजी में “डी“ लिखा हुआ था। “डी“ का अर्थ है डाउटफुल अर्थात संदेहास्पद। मतलब, ये सभी वे लोग थे जिन्हें “संदेहास्पद मतदाता“ घोषित कर दिया गया है। जिनके नाम के सामने मतदाता सूची में “डी“ लिख दिया गया है उन्हें चुनाव में मतदान नहीं करने दिया जाता है। जब ऐसे मतदाता मतदान केन्द्र पहुंचते हैं तो उन्हें बताया जाता है कि वे मतदान नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें संदेहास्पद मतदाता घोषित कर दिया गया है।
सबसे अधिक दुःख की बात यह है कि संदेहास्पद मतदाता घोषित करने के पूर्व, संबंधित व्यक्ति को न तो कोई सूचना दी जाती है और न ही उससे कोई स्पष्टीकरण मांगा जाता है। अर्थात, उसे स्वयं को वैध मतदाता या नागरिक सिद्ध करने का कोई अवसर नहीं दिया जाता है। मतदाता सूची का सरसरी तौर पर अवलोकन करने पर ही यह स्पष्ट नजर आता है कि संदेहास्पद मतदाता घोषित करने का यह कार्य अत्यंत लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना ढंग से किया गया है। ऐसा लगता है आंख मूंदकर किसी भी मतदाता के नाम के सामने “डी“ लिख दिया जाता है।
इस प्रक्रिया में हास्यास्पद गलतियां हो रही हैं। जैसे, किसी परिवार के मुखिया के नाम के सामने “डी“ लिख दिया गया है जबकि उसकी पत्नि केा वैध मतदाता माना गया है। किसी का पुत्र वैध मतदाता है तो उसके पिता को “डी“ घोषित कर दिया है। जिन्हें “डी“ घोषित किया गया है उनमें से अनेकों ने पूर्व के चुनावों में मतदान किया है। जिन लोगों को “डी“ घोषित किया गया है उनमें से बहुसंख्यक मुसलमान हैं। इन मुसलमानों में ऐसे लोग शामिल हैं जिनके पुरखे सदियों से असम में रह रहे हैं। उनके पास असम के मूल निवासी होने के अनेक सुबूत हैं। मुसलमानों के अलावा बांग्लाभाषी हिन्दुओं को भी “डी“ घोषित किया जा रहा हैै। जिन लोगों से मेरी मुलाकात हुई उनमें अनेक बांग्लाभाषी शामिल थे। इन बांग्लाभाषियों में से कई हिन्दू भी थे।
जिनको “डी“ घोषित किया जा रहा है वे जब सरकारी कार्यालयों में संपर्क करते हैं तब उनसे कहा जा रहा है कि वे असम का मूल निवासी होने का सुबूत दें। असम सरकार ने “डी“ घोषित किए गए मतदाताओ की षिकायतें सुनने और उनके द्वारा दिए गए प्रमाणों का परीक्षण करने के लिए “विदेषी न्यायिक प्राधिकरणों“ का गठन किया है। संदेहास्पद मतदाताओं से कहा जा रहा है कि वे अपना पक्ष इन प्राधिकरणों के समक्ष रखें। इन प्राधिकरणों में पूर्व न्यायाधीषों की नियुक्ति की गई है। ऐसे कुल 32 प्राधिकरण गठित किए गए हैं। इनमें से 19 प्राधिकरणों में न्यायाधीषों की नियुक्ति हुई है शेष 13 प्राधिकरणों में पद रिक्त पड़े हैं। इन प्राधिकरणों का काम बहुत मंथर गति से चल रहा है। अनेक प्रभावित लोगों ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक प्राधिकरण में एक से अधिक न्यायाधीष की नियुक्ति की जाए और रिक्त पड़े न्यायाधिकरणों में न्यायाधीष नियुक्ति किए जाएं। यदि ऐसा किया जाता है तभी उन लोगों के भाग्य का फैसला होगा जिन्हें संदेहास्पद मतदाता घोषित किया गया है।
जिस ढंग से यह कार्य किया जा रहा है उससे असम के मुसलमानों और बांग्ला भाषाभाषियों में भारी असंतोष है। अभी हाल में एक स्थान पर इस मुद्दे ने गंभीर मोड़ ले लिया। मतदाताओं को संदेहास्पद घोषित करने के साथ-साथ असम में “नेषनल रजिस्टर“ बनाने का कार्य भी चल रहा है। इसमें कौन-कौन सी जानकारियां दी जानी हैं, यह सूचना देने के लिए असम के दो स्थानों पर इसका प्रारूप वितरित किया गया। सभी लोगों ने प्रारूप को आपत्तिजनक माना और इसके प्रति अपना विरोध प्रगट करने के बारपेटा में भारी संख्या में लोग डिप्टी कमिष्नर के कार्यालय के सामने एकत्रित हुए। यह घटना 21 जुलाई 2010 की हैै। लोग शांतिपूर्ण ढंग से नारे लगा रहे थे। हमारे प्रवास के दौरान बारपेटा में आयोजित एक सभा में आए लोगों ने बताया कि शांतिपूर्ण प्रदर्षनकारियों पर यकायक गोलीचालन कर दिया गया। उन सबका कहना था कि गोलीचालन के पूर्व कोई चेतावनी तक नहीं दी गई। साधारणतः जब भी इस तरह का प्रदर्षन आदि होता है तब सबसे पहले भीड़ को तितर-बितर होने के लिए कहा जाता है। यदि भीड़ यह आदेष नहीं मानती है तो अश्रु गैस छोड़ी जाती है और फिर लाठीचार्ज किया जाता है। इसके बाद भी यदि भीड़ नहीं हटती और गंभीर हिंसा, तोड़फोड़ आदि करती है, तब पहले हवाई फायर किया जाता है। इसका भी अपेक्षित प्रभाव न होने पर चेतावनी देने के पष्चात भीड़ पर गोलीचालन किया जाता है। गोलीचालन के दौरान भी इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कम से कम जनहानि हो व जहां तक संभव हो गोली कमर के नीचे मारी जाए। बारपेटा में एकत्रित लेागेां ने बताया कि ऐसी कोई भी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी। बिना किसी सूचना के दनादन गोलियां चलाई गईं, जिनमें चार लोग मारे गए। जो लोग मारे गए उनके नाम हैं-मायदुल इस्लाम मुल्ला, उम्र 25 वर्ष, माजोम अली, उम्र 65 वर्ष, खंनडाकर मातलोब अली, उम्र 21 वर्ष और सिराजुल हक, उम्र 25 वर्ष। ये चारों गरीब थे। माजोब अली ठेला चलाकर अपनी जीविका चलाता था। खंनडाकर बढ़ई था। मायदुल एक छोटा व्यवसायी था और सिराजुल, लघु कृषक था। इसके अलावा इस घटना में लगभग 200 लोग घायल हुए। गोलीचालन के बाद प्रषासन द्वारा घोषणा की गई कि प्रत्येक मृतक के परिवार को तीन लाख रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिए जाएंगे परंतु दिनांक 17 सितम्बर तक पीड़ित परिवारों को एक रूपया तक नहीं दिया गया था। इसी तरह घायलों के इलाज की भी कोई व्यवस्था नहीं की गई।
संदेहास्प्द मतदाता घोषित करने और गोलीचालन के मुद्दे को लेकर मैंने बारपेटां के डिप्टी कमिष्नर (असम में कलेक्टर को डिप्टी कमिष्नर कहा जाता है) से मुलाकात की। उनका कहना था कि 21 जुलाई की घटना राजनीति से प्रेरित थी। जहां तक क्षतिपूर्ति का सवाल है, अभी उसके बारे में निर्णय होना है। यह पूछे जाने पर कि संदेहास्पद मतदाता घोषित करने का कार्य किसके आदेष पर किया जा रहा है, डिप्टी कमिष्नर  मौन रहे।
बारपेटा में एकत्रित लोगों ने बताया कि जब वे लोग प्रदर्षन कर रहे थे उस समय उनके क्षेत्र के विधायक व सांसद वहां मौजूद थे परंतु दोनों मूक दर्षक बने रहे और उन्होंने किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया।
इस गोलीचालन से क्षेत्र के नागरिकों में काफी रोष है। इस तरह, जिस ढंग से संदेहास्पद मतदाता घोषित करने का काम किया जा रहा है उससे भी लोग आक्रोषित हैं। संदेहास्पद घोषित किए जाने का अर्थ है संबंधित व्यक्ति को भारत का नागरिक होने के सारे अधिकारों से वंचित किया जाना। इसके नतीजे में गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति बीपीएल कार्ड से मिलने वाले लाभों से भी वंचित हो जाते हैं।
सबसे अधिक चिंता की बात है कि इस मामले में भारत सरकार अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखा रही है। यदि इस असंतोष और आक्रोष के कारणों को शीघ्र दूर नहीं किया गया तो असम में कष्मीर जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं)  

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