15 नवंबर 2009

शहीद उदा देवी को याद करने पर ग्रामीणों पर बरसी लाठी-गोलिया

- 25 घायल, कईयों के हाथ-पैर टूटे

- मायावती ने याद दिलाया प्रथम स्वाधीनता संग्राम

विजय प्रताप
1857 की शहीद ऊदा देवी की कुर्बानी को याद करने के लिए कौशम्बी के नंदा गांव में जुटे लोगों को मायावती ने एक बार फिर प्रथम स्वतंत्राता संग्राम की याद दिला दी। 32 अंग्रेजों को मार शहीद होने वाली उदा देवी की 152वीं जयंती की पूर्व संध्या पर रविवार को उनके गांव में पुलिस व पीएसी के जवानों ने अंग्रेजों सी वहशियत का परिचय दिया और निहत्थे लोगों पर लाठियां व गोलियां बरसाई। हमले में शकुन्तला देवी ( 50 वर्ष) पत्नी सूरजभान का दाहिना पैर टूट गया, छोटे लाल भारतीया सर, पैर व हाथ में गम्भीर चोटें आई है और सुकुनतारा, पत्नी मुरली निशाद हाथ व पैर में घायल है। इस घटना में 25 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं जिन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
यादगार समिति ने ऊदा देवी के 152वें शहादत दिवस पर प्रस्तावित जनसभा को मायावती सरकार के प्रतिबन्ध के कारण सराय अकिल से नन्दा का पूरा गांव में स्थानान्तरण कर दिया था, जहां पूरे जोश के साथ तैयारी चल रही है। नंदागांव में उदा देवी की जयंती मनाने के लिए करीब पांच हजार लोग एकजुट होने वाले थे। इससे पूर्व ही शाम को दो ट्कों में भर कर आए पुलिस व पीएसी के जवानों ने एकत्रित लोगों पर लाठियां व गोलियां बरसानी शुरू कर दी। बर्बरता की हद तब हो गई जब पुलिस के जवानों ने बच्चों व बूढ़ों तक को नहीं छोड़ा और कई को मार कर हाथ पैर तोड़ दिए।
इस सम्मेलन को रोकने के लिए कौशाम्बी के एस0पी0 आर0के0 भारद्वाज ने पुलिस से फ्लैग मार्च भी कराया था। उन्होंने एक दिन पूर्व ही एक बयान में कहा था कि ‘लाल सलाम’ संगठन के प्रदर्शनों पर शासन ने रोक लगा दी है। भारद्वाज ने समाचार पत्रों में दिए अपने बयान में कहा कि ऐसे लोगों का सहयोग करने वालों पर भी सख्ती बरती जाएगी। हालांकि वह यह नहीं बता सके कि शासन ने ऐसा किस कानून के अंतर्गत किया है। दरअसल यह सारा खेल स्ािानीय बसपा नेताओं माफियाओं के इशारे पर चल रहा है जिसमें पुलिस से लेकर पूरा जिला प्रशासन जुटा है। अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के महासचिव सुरेश चंद्र ने बताया कि एस0पी0 का बयान पूरी तरह असंवैधानिक व गैरकानूनी है हालांकि उनका कर्तव्य संविधान व कानून की रक्षा करना है। मनचाहे ढंग से प्रतिबन्ध लगाने की अनुमति संविधान उन्हें नहीं देता। बसपा को स्पष्ट कर देना चाहिये कि कम से कम 1950 के लिखित संविधान को वो नहीं मानती। उन्होंने कहा कि मायावती शासन विदेशियों की सेवा में गरीबों की आवाज को भी रोक देना चाहता है। जनसभा में तो केवल देश को लूटने वाली कम्पनियों और उनके दलालों के विरूद्ध आवाज उठती। मायावती शासन आवाज भी नहीं सुनना चाहतीं !
ऊदा देवी पासी यादगार समिति के संयोजक सुरेश चंद्र ने बताया कि ऊदा देवी पासी की कुर्बानी का सबसे मजबूत पक्ष था कि एक दलित महिला होते हुए भी वो देश को विदेशी लूट से बचाने के लिए कुर्बान हुईं। मायावती और बहुजन समाज पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वो विदेशी कम्पनियों का प्रान्त की लूट के लिए आमंत्रित कर रही है। कौशाम्बी क्षेत्रा में किसान व श्रमिक इस लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं जो मायावती व उनके स्ािानीय माफियाओं को नहीं सुहा रहे। यहां पहले भी स्ािानीय माफिया और पुलिस की मिलीभगत ने मजदूरों व श्रमिकों पर कई हमले किए हैं।
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी माले न्यू डेमोक्रेसी के राज्य सचिव आषीश मिततल कहते हैं कि ऊदा देवी पासी की लड़ाई का सवाल पूरे देश का सवाल है, आजादी का सवाल है, विदेशी लूट रोकने का सवाल है, जनता की मुक्ति का सवाल है। कई राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने इस हमले की निंदा की है। पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल) ने घटना की निंदा करते हुए इसके मजिस्ट्ेटी जांच की मांग की है।
हमले के बाद ग्रामीणों का साहस दोगुना हो गया है। यादगार समिति हमले के बावजूद 16 नवम्बर को नंदा गांव में कार्यक्रम पर अडिग है। संयोजक सुरेश चन्द्र ने बताया कि सम्भावना है कि पुलिस इस कार्यक्रम को रोकने के लिए 16 नवम्बर को भी ग्रामीणों पर हमला करें। लेकिन ग्रामीण उन स्थितियों का मुकाबला करने को तैयार हैं।

2 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

thik hai

अनिल चमड़िया ने कहा…

उत्तर प्रदेश में 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम की शहीद उदा देवी की याद में आयोजित सभा में पुलिस हमला वाकई शर्मनाक हैं। मायावती सरकार से ये उम्मीद नहीं थी। दरअसल 1857 की लड़ाई में जितने दलितों ने अपनी शहादत दी है उस इतिहास को दबा दिया गया हैं। दलितो के संघर्ष के इतिहास को दबाना वास्तव में दलित जन समुदाय के भीतर संघर्ष की चेतना को कुंध करने की साजिश है। पुलिस की इस तरह की कारर्वाई इसी तरह की साजिश का हिस्सा है। देश में दलित नवजवानों- और युवतिय़ों को अपने इतिहास को स्थापित करने की लड़ाई में पूरजोर तरीके से सक्रिय होना चाहिए। हमें पता है कि शासकों के इतिहास के पन्नों में दलितों का इतिहास कहीं नजर नहीं आता है। उदा देवी जैसे शहीदों की याद में किसी भी तरह के कार्यक्रम का आयोजन दलितों के बीतर संघर्ष की चेतना को मजबूत करता है। सरकार चाहें किसी के नेतृत्व में हो लेकिन वो आखिरकार सरकार ही है । यह सरकार उस कड़ी का हिस्सा है जो अंग्रेजी शासन से जारी है। मैं ऊदा देवी की याद में आयोजित इस कार्यक्रम पुलिस कार्रवाई को हमले के रूप में देखता हूं। उत्तर प्रदेश में अब जगह जगह ऊदा देवी की याद में कार्यक्रम आयोजित करने की योजना में लोगों को लग जाना चाहिए। हर जिले में ऐसे दलित शहीद है उन्हें भी इस तरह के कार्यक्रमों से जोड़ना चाहिए।
अनिल चमड़िया
पत्रकार एवं प्रो. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा

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